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Praveen Gola

Romance

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Praveen Gola

Romance

ये कैसी फैंटेसी बना ली तुमने ?

ये कैसी फैंटेसी बना ली तुमने ?

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ये कैसी फैंटेसी बना ली तुमने ?

मेरा ज़िस्म मचल उठा जिसे पढ़ बार - बार

,मैं भी भीगना चाहती हूँ तुम्हारे संग ,

तुम जितनी बार कहो उतनी बार मेरे यार |

कौन मानेगा भला कि अब तक हम ,

इन्ही खूबसूरत फैंटेसियों के सहारे जी रहे ,

हजारों ख्वाबों को इस दिल में दबा ,

रोज रातों में तड़पती इच्छाओं के घूँट पी रहे |

ये बारह साल का वक़्त कम नहीं होता ,

किसी को अपना कहने का दम हरएक में नहीं होता ,

पता नहीं दोनो मिलेंगे भी या नहीं हम कभी ,

क्या पता यूँही दम तोड़ देंगी अपनी फैंटेसियाँ यहीं सभी |

हर रोज़ तुम्हारी वासनाओं की चाहत ,

मेरा रुप - रँग और निखारती है ,

मेरे गोरे और नग्न बदन पर .....

तेरे पसीने की बूँद फिसलती जाती है |

मेरा रोम - रोम तब हर्षित होता ,

जब तेरी चाहत का विष मेरे अंदर उतरता है ,

मेरे उलझी केश लटाओं में तब ....तेरा सारा बदन पिघलता है |

मैं हो मतवाली तेरे स्पर्श से ....तेरे मोहपाश में बँध जाती हूँ ,

तेरी गर्म नशीली साँसों से तब ,तेरे अंदर तपती जाती हूँ |

हर रात मेरे सपनो में आकर ,तू वासनाओं की गाली देता है ,

मेरी फैंटेसी को अपनी फैंटेसी से जोड़ ,

ये वैवाहिक जीवन नए मसालों से भर देता है |

कभी - कभी अब सोचती हूँ ,कि गर ये फैंटेसी ना होती तो क्या होता ?

सच कहूँ गर सुन सको तो ....मे

रा कामुक बदन तब तबाह होता ||



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