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Akanksha Kumari

Romance

4  

Akanksha Kumari

Romance

तुम जादू थे (day 10)

तुम जादू थे (day 10)

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265

मैं अगर चाहती ना तो 

तुम्हें रोक भी लेती

पर कैसे....तुम तो बस एक ख्याल थे

जैसे कोई जादू थे तुम

तुम्हें ढूंढ भी लेती मैं

हजारों की भीड़ में शायद

पर तुम तो खुद पर ही सवाल थे

तुम अनजाने से थे जैसे कोई जादू थे तुम


देखूं किस तरह मैं

अब चेहरा फिर से तुम्हारा

किस तरह पाऊं मैं अब सहारा तुम्हारा

किस मोड़ पर तुम्हारी राह देखूं

किस तरह मैं तुम्हारी राह देखूं


सोचूं अगर तुम्हें तो आखिर सोचूं कैसे

रोकना हो अगर तुम्हें तो मैं रोकूं कैसे


मिल रही थी थी तुम्हारी परछाईं से

मेरे लिए वही काफी था

मिलना मेरा हमारी तन्हाई से

मेरे लिए वही काफी था

यूं तो खो चुकी हूं वो सब

अब किस रास्ते पर ढूंढूं तुमको

मुझको ये बताओ ना

याद तुम्हारी आती है जान

तुम अब वापस आ जाओ ना


एक बार मेरी ज़िंदगी में अपनी 

मौजूदगी का जादू वापस लाओ ना

एक बार बस एक बार

आकर मुझको खुद से मिला दो

तुम्हारे बिना जो आती ही नहीं

अब मुझे मेरी नींद लौटा दो ना


चले आओ ना

मुझे याद आती है तुम्हारी

खुशबू चले जाने के बाद 

आज भी मेरी सांसों में आती है तुम्हारी

शायद.... शायद कुछ हिस्सा तुम्हारा मुझमें बाकी है

शायद एक किस्सा ततुम्हारा मुझमें बाकी है


मुझे आज भी तुमसे मुहब्बत है

मुझे आज भी तुम्हारी आदत है

अब दुनिया से कोई गिला नहीं है मुझे

तुम्हें भी तो बस मुझसे ही शिकायत

काश हमारे बीच कभी कोई तीसरा आया ही ना होता

काश की ये दर्द मुझे रात भर ना सताता

शायद तब तुम और मैं आज भी "हम" होते

शायद तब कुछ गम कम होते।


                            


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