STORYMIRROR

Akanksha Kumari

Abstract

4  

Akanksha Kumari

Abstract

मेरा परिवार

मेरा परिवार

2 mins
264

मां की तरह गोद में मेरा सिर रखकर

मुझको यूं सुलाते हो तुम

पापा की तरह ज़िंदगी की हर धूप

मुझ तक आने के पहले 

खुद यूं झेल जाते हो तुम

भाई की तरह हर कदम पर

मेरी रक्षा का वचन देते हो

और बहन की तरह मेरी चॉकलेट्स

मुझे बिन बताए खा लेते हो तुम


देखो बात तो सच्ची है कि

जब तुम्हारे साथ होती हूं ना

तो ना याद मां की आती है

ना पापा की कमी खलने देते हो तुम

इसीलिए कहती हूं मैं तुमसे कि 

तुम महज़ मेरा प्यार नहीं

तुम परिवार हो मेरा 


जब पहली बार तुम्हें मैंने देखा था

भरी बाजार की भीड़ में मुझे

साफ और स्पष्ट दिखे थे तुम

और जब कदम तुम्हारी ओर बढ़ाए मैंने

क्या पता क्षण भर में कहीं गुम हो गए तुम

पूरे तीन महीने बाद अपने घर की बालकनी में

चाय की प्याली पकड़े जब खड़ी थी मैं 

तभी नजर ठीक सामने वाले घर पर पड़ी 

जहां अपनी कोई बिजनेस मैग्जीन पढ़ रहे थे तुम


एक वो दिन था जब तिरछी नज़रों से तुम्हे देखती थी

और अब हर रोज मेरी नींद को तोड़ने वाली

सुर्य की पहली किरण से हो बन गए हो तुम

सड़क के दोनो तरफ आमने सामने खड़े होकर

सुबह की चाय साथ चाय पीने से लेकर आज

बिस्तर पर मेरे उठते ही बेड टी लाकर देते हो तुम

इसीलिए कहती हूं मैं तुमसे कि 

तुम महज़ मेरा प्यार नहीं

तुम परिवार हो मेरा 


मैं कई बार गुस्से में झल्ला देती हूं तुम्हें

और तब बड़ी ही नज़ाकत से मुझको संभालते हो तुम

जैसी कोई माली संवारता है अपनी बगिया को

हुबहू वैसे ही मेरा ख्याल रखते हो तुम

जब जेठ की तपिश से जलती है जमीन


और बारिश की पहली बूंद उसको राहत देती है

ठीक वैसे ही दुनिया की चकाचौंध में

मेरी आत्मा का सुकून हो तुम

इसीलिए कहती हूं मैं तुमसे कि 

तुम महज़ मेरा प्यार नहीं

तुम परिवार हो मेरा 


तुम शोहरत नहीं सोहबत हो मेरा

तुम मौसूकी नहीं मोहब्बत हो मेरा

तुम कण नहीं दर्पण हो मेरा

तुम रूप नहीं काया हो मेरा

तुम इश्क नहीं इकरार हो मेरा

को मोहब्बत तुमसे है उसकी सौं कहती हूं

तुम महज़ मेरा प्यार नहीं

तुम परिवार हो मेरा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract