मैं तुम का भेद
मैं तुम का भेद
मैं कड़वी नीम सी; तुम मधुर शहद
मैं कांटों भरी गुलाब; तुम खुश्बू बेहद
मैं एक हवा का झोंका; तुम तीव्र अंधड़
मैं धीर धरा की भांति ; तुम आकाश गगन
मैं विचलित संवेग ; तुम स्थिर विचारनिष्ट
मैं वृक्ष की एक डाल; तुम अडिग जड़त्व
मैं एक आँचल का कोना; तुम घर आँगन
मैं नारी शक्ति दिव्य सी; तुम मर्यादित धर्म
मैं वेदों का ज्ञान सार; तुम जग ज्ञान भंडार
मैं जग जननी की शक्ति; तुम जगत ब्रह्मांड
मैं जीवन एक पहल; तुम जीवन का आधार
मैं पुष्प महक सुशोभित; तुम करुण नेह द्वार
मैं सलिल नीर की धार; तुम विशाल अंबुधि
मैं एक योद्धा का लक्ष्य; तुम वीरता प्रमाण।