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Neha Yadav

Tragedy

2.8  

Neha Yadav

Tragedy

संवेदनशील नारी

संवेदनशील नारी

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जी भर के रोया

जब सुना बेटीयों को जलते,

ख़ुद को भी कोसा।

ख़ामोशियों को अपना कर

आवाज़ जब भी बनी

मुँह बंद कर सुला दिया गया,

दुष्कर्म का शिकार बनी

मिटाने के लिए जलाई गयी।

दलदल से निकल संभलना चाहा

पर यहां तो पहले उकसाई गयी,

चाहत जीने की जगी मन में

पर उसमें भी आग लगाई गयी।

दुनिया देखनी चाही मैंने भी

पर बेटी हूं कह चुप करायी गयी,

नज़रिया अलग लड़कियों के लिए

तभी तो मैं यहां भी पर्दें छुपाई गयी।

बहुत अजीब तराना इस जहां का

एक दिन में सम्मान और दिनों में,

बेटी बहू का मजाक बन के छायी रही

हां सीखा है मैंने भी बहुत कुछ

नारी के नाम पर लाखों बार मैं तारी गयी।

कसूर स्त्री होने का तो ठीक है

जज़्बातों के आँचल से लिपट के,

मैं हर दम तुझपर वारी गयी।

संदेह नज़र के खेल में गलत कह

पलड़ों पर रख के भी हर बार तराशी गयी

हां नारी हूं मैं शायद इसीलिए

हमेशा जीत के भी मैं हारी गयी।।



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