कैसा
कैसा
बो जो होकर भी अस्तित्व में नहीं है,
फिर उसकी मेरे कहानी में होना कैसा ?
बो जिसने मुझे कभी अपनाया ही नहीं,
तो उसे पाना क्या और खोना कैसा ?
बात बात पर हो जाती हैं जो खफा मुझसे,
तो उसकी रूठना क्या और मेरा मनाना कैसा ?
मेरे आंखो में बो झांके और मदहोश ना हो,
तो फिर कैसा ये नशा और ये मयखाना कैसा ?
फना हो जाएगा कुछ देर में ये ओस की बूंदे,
रात ढल जाने के बाद बादियों में लौटना कैसा ?