कोई अचानक से अलग नहीं होता
कोई अचानक से अलग नहीं होता
कोई अचानक से अलग नहीं होता
शुरु हो जाता है अलग होना,
अलग होने से बहुत पहले ही।
बढ़ जाता है अनायास दूरियां,
दूर होने से बहुत पहले ही।
सिलसिला शुरू होता है ये,
पहले बहुत परवाह जताने से।
फिर लापरवाह हो जाने से,
कभी बेपरवाह हो जाने से।
बात बात पर कोई बात,
सुनाई जाने लगता है।
कुछ बातें बास मन में ही,
बुदबुदाई जाने लगता है।
सिकायतों का एक पाहड़,
बास बढ़ता ही जाता है।
और सब्र का बांध है एक,
जो घटता ही जाता है।
फिर ये तय हो जाता है,
की अब दूर होना ही अच्छा।
ऐसे टूटे फूटे रिस्ते से,
तो रिस्ता ना होना ही अच्छा।
और अलग हो जाते हैं दो लोग,
आपने आपने सर्तों के साथ।
फिर कहते हैं अचानक दूर हो गए,
बो दो पंछी जो रेहेते थे साथ।