घर छोड़ जाने को
घर छोड़ जाने को
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देखो न!
कुछ बचा ही नहीं है बताने को
ना कुछ सुनने को
ना कुछ सुनाने को।
यादें बस कहर बरसा रही
कसक भी नहीं बची
कुछ खोने या
कुछ पाने को।
सफ़र तय कर ही रहे तन्हा
अब कोई नहीं रहा
रूठने या मनाने को।
ख़ुद से लड़ के
ख़ुद ही टूटते हैं अब तो
चाहत नहीं रही
किसी दिली आशियाने को।
किरायेदार बने बैठे रहें
जिसके सांसों की
उन्हें क्यूं परवाह मेरी
टूटने या मर जाने को।
ज़माने भर की
आजमाइश नहीं मुझे
डरते रहे एक तुझसे दूर
जाने को।
खुद्दारी मुझसे मत पूछो
जज़्बातों से पूछो
कौन सितमगर उकसा रहा
घर छोड़ जाने को।