काश! हमारा भी कोई होता।
काश! हमारा भी कोई होता।
वो खुशनसीब,
जिनका महबूब होता,
जिंदगी में प्यार पनपता,
खुशीयों से समा बंधता,
उपर वाले की कायनात पे भरोसा जमता।
एक हम,
जब से आए हैं इस दुनिया में,
अकेले ही चले जा रहे हैं,
कोई भी साथ आने को नहीं तैयार,
वाह ये उपर वाले,
तुने कैसे कैसे इंसान बना डाले।
कुछ की जिंदगी में रंगीनियां ही रहती,
और कुछ कुछ नहीं हासिल कर पाते,
जैसे जीवन में आए,
वैसे ही चले जाते,
लाख कोशिश करने पे भी,
किसी का दिल नहीं जीत पाते,
जहां भी कदम बढ़ाते,
बस मात खा जाते।
लगता है प्यार उनके नसीब में नहीं,
बस आहें भर के रह जाते,
दूसरों की खुशनसीबी देख,
मन में टीस सी उठती,
किंतु नाकामी तुरंत आ दबोचती,
और चेहरा लटकाए हुए बैठ जाते।