कुदरत की दस्तक।
कुदरत की दस्तक।
आज सुबह से,
मौसम गुमसुम,
कोई हवा नहीं,
बिल्कुल शांत,
चारों और,
बादलों का घनेरा,
एकदम,
निगा मौसम।
ऐसे ही,
रात हो गई,
चुपचाप गर्म पानी की,
बोतल ली,
रजाई में दड़ गया।
कुछ देर लेटा रहा,
बिस्तर गर्म हो गया,
ऐसा आदर्श समा,
बाहर खुले में,
एक दम जीरो डिग्री,
अंदर गुनी गुनी गर्मी।
ऐसा आनंद,
सिर्फ,
माशूका बांहों में हो,
तभी आता।
आंख लग गई,
जैसे ही उठा,
दरवाजा खोला,
बाहर देखा,
एक बहुत बड़ी,
सफेद चादर बिछी हुई,
दूर दूर तक,
कंपकंपी लगती हुई।
मानो परियों के,
देश में,
आ गया,
इतना मनमोहक दृश्य,
सिर्फ सपनों में,
देखा।
आज यथार्थ हो गया,
अपनी नंगी,
आंखों से,
देख लिया।