काश! हमारा भी साथ होता।
काश! हमारा भी साथ होता।
ठंड बहुत अधिक,
सब खिड़की दरवाजे,
बंद कर,
बैठा हूं अंदर।
एक दम अकेला,
शरीर सुन,
जब की,
चारों तरफ से,
ढंका हुआ,
फिर भी,
बात नहीं बन रही,
सर्दी नहीं हट रही।
शायद किसी का,
इंतजार,
उसकी बातों में,
वो गर्मी,
उसको छूने पर,
जो तपिश पैदा होती,
वो सुने,
शरीर में,
आग की,
चिंगारी जलाती,
वो आग,
एक बहुत बड़ा,
शोला बन जाती।
ये शोला,
दहक दहक कर,
जल उठता,
जब उसका,
मेरा,
हमारा हो जाता।