तुम कुछ भी ना कह पाओगे
तुम कुछ भी ना कह पाओगे
"चुटकी भर खुद को तुम्हारे भीतर छोड़ कर तुम्हारी दुनिया से
दूर जा तो रही हूँ, पर जानती हूँ तुम मेरे बिना रह नहीं पाओगे"
गज़ल के उजालों में मेरा अक्स जब ढूँढोगे
तब हर पंक्तियाँ हर शेर से छलकती उदासियाँ ही पाओगे।
रात की विरानियों में चाँद के चेहरे में मेरा माहताब जब ढूँढोगे
तब अमावस का गहरा अंधेरा ही पाओगे।
सीने के भीतर धक-धक की तान में जब नाम का मेरे सिमरन ढूँढोगे
तब मरसिया संगीत के सूर ही पाओगे।
हासिल थी नखशिख तुम्हें रूह तक मैंने अपनी गिरवी रख दी,
ढूँढते रहे तुम औरों में जाने कौन सी खुशी।
दूर-दूर तक फैली खामोशियों में जब आवाज़ मेरी ढूँढोगे
तब सन्नाटों से लिपटी मौन दुनिया ही पाओगे।
कैसे रह पाओगे मेरे बगैर मैं ख़्वाब नहीं हकीकत हूँ,
आदतों में अपनी जब ढूँढोगे ज़र्रे ज़र्रे में मुझे ही तुम पाओगे।
ज़िंदगी की शाख से मुझे सूखे पत्ते सी गिरा दिया,
कोना-कोना जब पूछेगा पता मेरा तब तुम कुछ भी ना कह पाओगे।
जिनके लिए मुझसे नाता तोड़ा तुम उनके ही हाथों छले जाओगे,
ढूँढोगे अपनों का सहारा तब मुझको ही करीब पाओगे।
टूटने का दर्द जानती हूँ तुम ना सह पाओगे कैसे तुम्हें टूटने दूँ
रूह की गहराई से चाहा है, ढूँढोगे मेरी पनाह जब अपनी आगोश में ही मुझे पाओगे।