बेमन के रिश्ते
बेमन के रिश्ते
यूं ही साथ- साथ चलते चलते
जिंदगी के मोड़ पे हम अलग हुए
पर क्या सच में हम अब साथ नहीं
नये रिश्तो में बंधी हूं नये जिम्मेदारियों से घिरीं हूं
पर क्या सच में तुम से अलग हूं
किसी के जाने के बाद तो एक खालीपन होता है
पर सबके साथ रहते हुए भी
अकेलापन हो तो क्या करूं
बेमन के रिश्ते कब निभाते हैं
क्या जिंदगी की तस्वीर सिर्फ इतनी सी है
साथ चलना फिर अलग हो जाना
क्या यही तकदीर हैं
पर आंसूओं में तकलीफ में
तुम्हें पा लेना काफी नहीं
माना एक कमी सी है जिंदगी थमी सी है
तुम पास भी हो और दूर भी
इस एक बात को तुम्हें कैसे समझाऊं
गीली मिट्टी में निशान बनाना आसान था
पर रेत पे तस्वीर कैसे बनाऊं
मैं इंतजार में बैठी हूं
यू हीं साथ चलते चलते
जिंदगी के मोड़ पे हम फिर मिल।