STORYMIRROR

Rajivani singh

Tragedy Others

3  

Rajivani singh

Tragedy Others

उलझने

उलझने

1 min
541

कतरा कतरा सी टूटी हूँ

कतरा कतरा सी छूटी हूँ

इस जिंदगी की आपाधापी में जाने कहां छूटी हूँ

एक मोड़ जिंदगी की ऐसी है

जहां रोज थोड़ा थोड़ा बिखरी हूँ

बेमतलब के रिश्ते, बेमतलब की बातों में

जाने क्यों उलझी हूँ

उलझनें मन की जाने कब सुलझेगी

कतरा कतरा से टूटी हूँ


एक भोर ऐसा हो जीवन में

जब अपेक्षाएं और उम्मीदों का बोझ न हो मन में

खुलकर मैं भी हंस लूँ थोड़ा

बस ये ख्याल ही जीवन में थोड़ा सुकून देता है

ठहर के मैं भी सोचूँ जरा

क्या क्या खोया क्या क्या पाया जीवन में

रिश्ते तो बनाना आसान था

और निभाना बहुत मुश्किल

खुद को खोती जाती हूं मैं

तुमको थोड़ा थोड़ा पाने में

कतरा कतरा सी टूटी हूं कतरा कतरा सी छूटी हूं



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy