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Rajivani singh

Romance

4  

Rajivani singh

Romance

प्यारा सा रिश्ता

प्यारा सा रिश्ता

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295


एक उलझन सी है उसे सुलझाओ ना

अधूरा है या पूरा बतलाओ ना

जितना भी समझूँ जितना भी जानूँ

क्यों लगता है अभी भी अंजाना सा

ये प्यार है या कुछ और बतलाओ ना

दीया दर्द तुमने जितना खुशी भी उतनी दे दो ना


रेत सा पिघलता वक्त क्यों चाहूं इसे थामना

क्या मुमकिन है खुशी के पल को दोबारा वही रोकना

नहीं चाहती कुछ भी अब बस यही है कामना

थाम के तुम्हारी बाहें कुछ पल यूँ ही बैठना

देखती रहूं तुम्हें यूं ही मुस्कुराते हुए

झांकते हुए आंखों की नमी में नाम अपना ढूंढना


कुछ पल का साथ हमारा

क्यों नहीं बना जीने का सहारा

ढूंढता है आज भी मन वह सुकून के पल जो बिताए हमने साथ में

खलती है कमी तुम्हारी खलती है कमी तुम्हारी

रोशनदान तो आज भी बंद हैं

पर यादों की गलियों में तुम आज भी हो

जीने की जद्दोजहद है जिम्मेदारियों का बोझ

नहीं तो तुम और मैं आज हम होते हैं



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