इश्क बावरा
इश्क बावरा
मन मेरा इश्क में होकर बावरा
कभी तय नहीं कर पाया कोई दायरा,
जानता है आसान नहीं है इतना
इश्क में डूबकर यूँ पार निकल जाना।।
इसने देखा है लोगों को दाँव पर लगाते जिंदगी
देकर अपनी साँसें जो करते रहे इश्क की बंदगी,
माना कि बहुत कठिन है ये इश्क की डगर
पर हो जाती है आसान गर हो संग हमसफर।।
यही सोच कर उस लड़की को भी इश्क हो गया
देख सुन्दर सलोना सा चेहरा दिल उसका धड़क गया
आँखों ही आँखों में हुई बातें और बढ़ने लगी मुलाकातें
गहरी होने लगीं चाहतें दिलों में रोज नये सपने सजाते।।
इश्क के दरिया में लहरें दोनों तरफ उठी थीं
बेहद मासूम, निश्छल, दुनिया की रीत से अनजान
जमाने से छिपकर खाई कसमें और
आज तारों से माँग उसकी सजी थी
मान लिया एक दूजे को ईश्वर का वरदान ।।
पर इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते
बैरी जमाने की नजर उन पर भी पड़ गई
इश्क दोनों का सबकी नजरों में लगा खटकने
जात और धर्म की दीवार फिर से बीच में आ गई। ।
लग गईं हजार बंदिशें, रची गईं साज़िशें
लगता था जैसे फिर एक बार इश्क हारा
दोनों ने इन दीवारों को तोड़ने की कई कोशिशें
पर सभ्य और सुसंस्कृत समाज को होता कैसे ये गँवारा।।
दूसरे दिन के सारे अख़बारों में सुर्खियाँ छपी थीं
फिर एक जोड़े ने दे दी अपनी जान
बचाने को समाज की दंभित झूठी शान
इश्क ने दिया फिर एक बार बलिदान ।।
क्यों हर बार इश्क यूँ हार जाता है
मुट्ठीभर लोगों के सामने बेबस नजर आता है
गलती इश्क की भी नहीं इसकी तो हर मिसाल ही अधूरी है
लैला-मजनू, शीरी-फरहाद इन सबका अंत में मरना जरूरी है।