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Sunita Shukla

Tragedy Others

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Sunita Shukla

Tragedy Others

एक और विलेन...!!

एक और विलेन...!!

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ये जो हिन्दी फिल्में हैं

कहीं न कहीं हमारी जिंदगी का आईना होती हैं।

कोई इनमें हीरो तो 

कोई विलेन का किरदार निभाता है

जिसमें हीरो अच्छा और विलेन बुरा माना जाता है।

पर अब तो ये परिभाषा भी बदल सी गई है

आजकल तो

हीरो ही नायक और वही खलनायक होता है

खो सी गई है...... 

दोनों के बीच की वह महीन रेखा

जो बाँधती थी उनकी सीमा रेखा। 

अब तो....


परिस्थितिजन्य किरदारों का बोलबाला है।

कुछ ऐसी ही कहानी

आज हमारी जिन्दगी की भी है....

कभी लोग तो कभी घटनाएँ विलेन बन जाती हैं

और इन सबके बीच

हम स्वयं को हीरो सा दर्शाते हैं।

विडंबना देखिये....

पर्दे का वो किरदार 

आज हमारे घर-परिवार में घुस आया है

हमसे जुड़े हर रिश्ते में इसने अपनी पैठ बनाया है

नौजवान बेटे को टोकता पिता 

खलनायक सा लगता है

बेटी को अच्छे-बुरे का ज्ञान देती माँ

ओल्ड फैशन मानी जाती है

वैसे भी माँ-बाप तो 

बड़े होते बच्चों की नजर में 

अक्सर खलनायक ही नजर आते हैं

ये अलग बात है कि 

जब तक समझ आती है 

तब तक बहुत देर हो जाती है।


भाई को "चिल" करने से रोकती बहन

जाने कब विलेन बन जाती है

बहन के बहकते कदमों को रोकता भाई 

क्यों खलनायक कहलाता है।

सास-बहू, ननद-भाभी, देवरानी -जिठानी

एक दूसरे के लिए.....

तो सनातनी विलेन माने जाते हैं

भले वे कितने भी प्रेम भाव से रह लें

पर समाज की भेदती नजरों को

मिल ही जाता है उनमें भी एक विलेन।

यूँ तो हर इंसान के कई पहलू होते हैं

अपनी जिंदगी में हर किरदार वो निभाता है

परिस्थितियों के अनुसार ढल भी जाता है

पर ये हमारी सोच पर है कि 

किसे नायक कहें और किसे खलनायक

लोगों को आपमें, मुझमें और सब में

ढूँढने से भी हीरो मिले या न मिले

पर हर शख्स में मिल ही जाता है

एक और विलेन........!!


 


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