नेह भरी पाती
नेह भरी पाती
काली भूरी बदली छाई
चपल दामिनी दमक रही
नील गगन के पर्दों से बरखा
हौले से है झाँक रही
पवन झकोरों से टकराकर
निर्मल बूँदें बरस रहीं।।
इन गीली-गीली रातों
और भीगे-भीगे से दिन में
हुलस उठी है चुभन जगी है
तपता तन-मन विरह अगन में
ये रिमझिम बरसातों का मौसम
और साथ तुम्हारा केवल यादों में।।
उनके आने का इंतजार
तकती हूँ राहें बार-बार
इन इंतजार की घड़ियों में
बातें उधार रह जाती हैं।
बूँदों की इन लड़ियों सी झरकर
मन ही मन में दब जाती हैं।।
मेघों ने कर दी गगरी खाली
बरखा रानी भी बरस गईं
ओस की नरमी फूलों पर
कली-कली है मुसकाई
लौट आये हैं सभी परिन्दे
पर उनकी खबर न आई।।
अब तो गहरी धूप छिटक गई
आँगन और चौबारों में
सावन भादों सूख गए
ज्यों तपे जेठ अब जाड़ों में
जाने कितने मौसम बीत गए
मन जलता रहा अंगारों में।।
अपने आने की एक खबर से
फिर तुम आस जगा दो
धरती शीतल हर्षित उपवन
मन का पुष्प खिला दो
आने की देते खबर नहीं
एक नेह की पाती ही लिख दो।।
पाती को बरखा समझ
शब्दों से हृदय भिगो लूँगी
बिन बारिश की बूँदों के
बरसातों का अनुभव कर लूँगी
भावों के अनगिनत सीप से
प्रेम के मोती चुन लूँगी....।।