जीने का हक
जीने का हक
ख़्वाबों में, ख्यालों में रहती थी कभी
पलकों पर मेरी तुम सजती रही
बादलों में खो गई हो अब कहीं
है गुज़ारिश इतनी सी,
अनजान न बन जाना,
राहों में गर मिल जाओ कहीं।
सुकून का सिलसिला न रहा अब
रूठना, मनाना, वादे निभाना
कल सा हो गया सब।
सपना बुना था जो मिलकर,
सपना ही रह गया अब।
हकीक़त में रहती थी जो ,
खयालों में ही सिमट कर
रह गई हो अब।
न बहका था मैं तभी।
न बहका हूं अभी।
मायूसी का साया छाया नहीं कभी।
धुआँ -धुआँ न हुई जिंदगी अभी।
न शिकवा न शिकायत अब तुमसे
न दस्तूर है कोई निभाना अब से
तुम रहो सुकून की छांव में
न कश्मकश निगाह में।
समझाता हूं खुद को
समझौता नहीं है जिंदगी
जीने के हक से,
जीना है जिंदगी।