उसका ही चहेरा
उसका ही चहेरा
मेरे बेकरार मन में विचार उसका आता था,
दिन रात मुझको ईन्तज़ार उसका रहता था,
रात को ख्वाबों में जब में देखुं तो,
चहेरा उसका ही नजर आता था।
हरपल मेरी जीभ पर नाम उसका आता था,
मैने गज़ल जब लिखी तो पहला शेर उसका था,
जब महफ़िल में गज़ल मैने गाई तो,
चहेरा उसका ही नजर आता था।
जब वो मुजे मीली तो ईश्क का एकरार उसका था,
ईश्क के लिये पूछा तो मुझ पर एतबार उसका था,
मैने दिल में झांखकर जब देखा तो,
चहेरा उसका ही नजर आता था।
मैने पास बुलाया तो बांहों में सिमटना उसका था,
मुझे मदहोश बनाने वाला बेशुमार हूश्न उसका था,
जब होंठो से होंठ मिलाये तो "मुरली",
आग बढाने वाला चहेरा उसका था।