फिर वही नज़्म !
फिर वही नज़्म !
फिर वही नज़्म गाता हूं!
गीत तेरे हर्फ बना मैं,
लबों पे नज़्म सजाता हूं,
शाम घिर लायी अंधेरा,
जुगनू की धुन गुनगुनाता हूं,
फिर वही नज़्म गाता हूं!
अंदेशों के दरवाजों पर मैं,
सुर से निशाना लगाता हूं,
शब अधूरा, शिकन अधूरा,
तेरे माथे को पढ़ता जाता हूं ,
और..फिर वही नज़्म गाता हूं!
चूम कर माथे को तेरे,
शिकन मैं चुनता जाता हूं,
प्रेम शबरी का समझ मैं,
बेर जूठे खा जाता हूं,
सुर्ख पत्ते टूटने से डाल पर,
आंधियों को बांध लाता हूं,
ढेर बिखरे शब्दों के उजले,
सीप मोतियों का चुन लाता हूं
हर विषम मुश्किल घड़ी में,
नज़्म वही मैं गाता हूं,
तुम जो आओ साथ गा दो,
सुर छंद ऐसे सजाता हूं !