गुलाबी पर्चा
गुलाबी पर्चा
उस चौराहे के नुक्कड़ पर चाय की वो दुकान,
छज्जे जिसके कच्चे ही हैं,
वहां रोज सवेरे तड़के ही उजियारा हो जाता है,
कुछ खाली और कुछ आधे भरे चाय के गिलास,
गिलास के उस पार झांकते अखबार के कुछ पन्ने,
अखबार के उन पन्नों में खबर है,
नई फिल्म की हफ्ते भर में अरबों की कमाई,
अखबार में खबर ये भी है,
भारतीय सुंदरी की मिस वर्ल्ड ताजपोशी की,
उसी अखबार में है,
प्रधानमंत्री की आधे पेज की तस्वीर,
लोकार्पण किसी जन सुरक्षा योजना की,
अखबार के कोने में जगह मिली है,
शहर में चल रहे 50% छूट वाले फैशन सेल को भी,
अखबार से सटे उस पीले दीवार पर,
चस्पा है गुलाबी पर्चा,
एक गुमशुदा बाप की तस्वीर,
जिसे ढूंढ रहा उसका बेटा,
पिता की कद, काठी और तस्वीर बता कर,
क्योंकि नहीं मिली उसके गुमशुदा बाप की खबर को,
जगह अखबार के पन्नों पर,
शायद तुच्छ है कीमत एक इंसान की,
फिल्म, विश्व सुंदरी और जन सुरक्षा योजना की अपेक्षा...
चाय के साथ रंग बिरंगे तस्वीरों वाला अखबार का विज्ञापन कॉलम,
और चाय की गिलास तले दबा,
झांकता समोसे के साथ
वो गुलाबी पर्चा,छपा है जिसपर....
गुमशुदा पिता की पुत्र को है तलाश...!