।। दिल रह रह कर दुखता है ।।
।। दिल रह रह कर दुखता है ।।
जब अपना कोई जाता है,
समय का पहिया रुकता है,
ये चोट लगी है जो दिल पे,
कांधा तो थोड़ा झुकता है,
जग को दिखलाने को चाहे
कितना भी संयत रह लूँ मैं,
भीतर ही भीतर हर पल,
दिल तो रह रह कर दुखता है।।
वो यादों का जुड़ा काफिला,
वो जो संग गुजारा हर लम्हा,
भीड़ भले ही आज बहुत है,
तुम बिन अब मैं कितना तन्हा,
वक़्त भले ही कितना बीते,
ये अब तक ना रुकता है,
चाहे, अनचाहे, जबचाहे ही,
दिल तो रह रह कर दुखता है।।
कितनी बार न जाने मैंने,
इस दिल को समझाया है,
जाना ही होता हर उस को,
जो इस दुनियां में आया है,
ये अश्कों का दरिया आंखों में,
अब भी क्यों ना रुकता है,
गर आंखें नम ना भी हौं तो,
दिल तो रह रह कर दुखता है।।
जीवन में एक खालीपन सा,
जाने से अब तेरे है आया ,
कितना भी चाहूं भर न सका,
जीवन,ये सब तुझ ही में समाया,
घर का हर कोई खाली कोना,
क्यों आंखों में रह रह चुभता है,
तुझ बिन घर को खाली पा कर,
दिल तो रह रह कर दुखता है।।
समय चक्र चलता ही रहता,
मन भीतर ही भीतर बलता,
तुम बिन ही जीवन ये जीना,
मर्म यही अब हरदम खलता,
जब जब आंसू पोंछे है मैंने,
फिर दर्द नया कोई उगता है,
कैसे समझाऊं इस दिल को,
ये दिल रह रह कर दुखता है।।
