।। मेरे जीवन के जादूगर ।।
।। मेरे जीवन के जादूगर ।।
सुना है न आपने
जादू का खेल
जिसमें होता एक जादूगर
जो विस्मय से कराता मेल।
क्या कभी सोचा है
कितने जादूगर हैं इस जीवन अपने
जिनके करतब और दृष्टिबंध से
होते पूरे हैं अपने सपने।
हम हम हैं क्योंकि ये
जादूगर हैं जीवन में आते
इनसे ही है जीवन की गति
जीवन का मतलब इनसे पाते।
जीवन जो कहलाता मायाजाल
जिंदगी सुख दुख की लड़ी है
इसमें होते चमत्कार का कारण
बस इन जादूगर की छड़ी है।।
माँ पहली जादूगर इस दुनियां की
परीलोक से धरती पर लाती
अपने गर्भ में धारण कर
प्राण डाल कर जीव बनाती।
फिर आता वो दिन इस जीवन
तुम इस दुनियां से होते अवगत
जो सिंचित पोषित हुआ उदर मां
दुनियां करतल से करती स्वागत।
ये जादूगर करुणा ममता की
लिए पोटली फिरता है
मुझ को जो हो दर्द जरा
इसकी आंखों मे बादल घिरता है।
ये जादूगर अपने जादू से
मेरी खुद से पहचान कराता है
हो रूप कोई या लिंग कोई
पर ये मुझ को इंसान बनाता है ।।
अब जीवन की इस जादूनगरी में
एक और जादूगर का होता प्रवेश
ईश्वर का वो अंश दूसरा
धरती पर जो पाया पिता वेश।
जो दुख सारे रख अपनी झोली
स्मित रखता अपने मुख हरदम
कष्ट डाल कर टोपी सब अपनी
धूप छांव सब में वो सम।
वो गर्व भी वो पहचान भी
है इस जग में उससे नाम भी
वो झंझोरता भी पुचकारता भी
वो बैचेनी तो वो आराम भी।
ये जादूगर इस जीवन पथ पर
मंजिल दिखलाए रस्ता बतलाता
इसका जादू जैसे शक्कर सा
जीवन घोल में घुलता जाता ।।
जब कुछ होश सम्भाला हमने
फिर जीवन में वो जादूगर आए
भाई बहन या मित्र सखा हों
सब ही तो इस मन को भाए ।
मैं हंसता तो ये हंसते हैं
मैं रोता तो ये भी रोते हैं
मैं जब भी हारा या थका कभी
ये हरदम आजू बाजू होते हैं ।
इनकी जादू की झप्पी जैसे
बस मिले तो सब दुख गायब हैं
मैं रहूं कहीं भी पास दूर
इनके जलवे तो बस नायब हैं ।
सब मन के या बेमन के मैने
राज इनसे ही खोले है
जब चाहें ये बन जायें जमूरा
ये जादूगर बड़े ही भोले हैं ।।
फिर एक जादूगर ऐसा आया
जिससे मैने प्रतिभा को पाया
गोविंद मिलाए के अंतर जागा
जब ये तन गुरु संगत पाया ।
हो अंकों की चाहे भूल भुलैया
या शब्दों का हो कैसे मेल
क्या हैं इस जीवन का मकसद
क्या संजीदा क्या बस खेल।
ये जादूगर हर मंजिल मेरी
ये ही नौका की है पतवार
मेरी प्रतिभा को चमकाकर
दिया मुझे थी जिस की दरकार।
जो एक बीज अंकुरित पादप बन
लगे आज एक वृक्ष सा व्यापक
इस जादू को जो सार्थक करते
वो जादूगर सब मेरे अध्यापक ।।
अब प्रवेश जीवन में उस का
जिस का जादू सर चढ़ कर बोले
जिसने आकार जीवन में मेरे
अपने घूंघट के पट थे खोले।
अर्धांगिनी, सहचरी ,भार्या वो
सचमुच कितनी है अलबेली
जब से वो इस जीवन आई
मेरे सब सुख दुख संग खेली।
वंश दिया, परिपक्व किया
ये जाने कितने सारे मंतर
एक स्पर्श जो मिलता है इसका
कष्ट मेरे ज्यों सारे छूमंतर ।
एक जन्म जो साथ जुड़ी
फिर जाने कितने जन्मों का लेखा
इस जादूगर ने मुझ से जोड़ी
है बस अपनी जीवन रेखा ।।
अब जिन जादूगर का वर्णन
उन को में इस दुनियां में लाया
उनकी नन्ही हंसी में मैंने
फिर से जैसे बचपन पाया ।
अपना सारा गुजरा जीवन
अब में इनमें फिर से हूं जीता
जितने जादू है अब तक सीखे
एक एक नित इनके मन सीता ।
इनकी खुशियां अब खुशियां मेरी
इनके दुख मेरी कमजोरी
इनके ही इस जीवन आने से
ये जीवन गद्य बना एक लोरी ।
ये जादूगर अपनी विद्या से
मेरे जीवन को अमर कर लैंगे
जब जब करतल इनको होगी
हम अपने वैकुंठों मे फिर तर लैंगे
हम अपने वैकुंठों मे फिर तर लैंगे।