"लोगो की बदमाशियां"
"लोगो की बदमाशियां"
लोगों की बदनामियों से कदापि न डर
खुद पर तू साखी इतना भरोसा कर
बदनामी करनेवाले भी हो नतमस्तक
कर्म शक्ति से तू वो विश्वास पैदा कर
तुझे हरानेवाले भी कहे, तू है बाजीगर
औरों से नहीं तू खुद से मुकाबला कर
जिस दिन तूने इंद्रियों को दे दी टक्कर
उस दिन समझ बन गया तू सिकंदर
लोगों की बदनामियों से कदापि न डर
लोगों का काम काटते फलवाला शजर
जिंदगी में बस तू खुद पर भरोसा कर
तुझे ज़माने की कभी न लगेगी ठोकर
अपने उड़ान को तू इतना ऊंचा कर
फ़लक भी कह उठे कहां है, तेरे पर?
तुझ में जिंदा है, साखी खुदा का अंबर
खुद को बना, साखी तू इतना निडर
डर भी कहे क्या करूँ रे, अब तेरा नर
लोगों की बुराइयां से अगर गया डर
यह दुनिया बना देगी तुझे एक जोकर
जो कहते तू कुछ न कर पायेगा, नर
उन्हें दिखा दे, तुझ में है, वो कर्म नजर
आलस्य फौलाद की पिघलाती कमर
लोगों की बदनामियों से कदापि न डर
तुझ में जिंदा स्व मस्ती का वो शहर
जिसमें टूटता नकरात्मक सोच-पत्थर
सकारात्मक का बन जा ऐसा समंदर
मीठा हो जाये, हर गम का कटु प्रहर
लोगों की बदनामियों से कदापि न डर
लोगों का काम है, रखते वो ईर्ष्या घर
तुझे चलना और पाना मंजिल पत्थर
अनसुना कर दे, जो भी रोके तेरा सदर
चलता चल, तब तक न रुक मेहनती नर
जब तक नहीं पा ले तू अपना लक्ष्य वर
लोगों की बदनामियों से कदापि न डर
लोगों की बातों को बना अपना शस्त्र
तभी जीतेगा तू जग-दलदल समंदर
अपनी सोच को बना साखी इस कदर
लोगों की बुराइयां भी लगे प्ररेणास्पद
लोगों की छींटाकशी से कदापि न डर
लड़ाई कर, तू खुद से जोरदार सस्वर
जीत होगी, पहले स्व बुराइयां कर बेघर
