ख़ुद से न हो भयभीत
ख़ुद से न हो भयभीत
जिंदगी ने दी है, मुझे यह अनमोल सीख
कभी नही होना, तू यहां खुद से भयभीत
गर साखी तूने खुद को लिया न यहां जीत
कोई नही छीन पायेगा, तेरी खुद्दारी जमीन
निकलेगा भू फाड़कर मेहनत का बीज
तू कर्म करता जा जग रण में हो निर्भीक
तू साफ रह, सच्चा रह पर भीतर ही रह,
लोगो को पता चला परेशां करेंगे ढीठ
यह दुनिया उसी को सजदा करती है, नित
बाहर से सख्त, भीतर जो रहता है, पुनीत
जिंदगी ने मुझे दी है, यह अनमोल सीख
लोग बिना स्वार्थ के नहीं करते है, प्रीत
गर पत्थर का जवाब दिया, तूने बन ईंट
दुनियावाले जरूर दिखा देंगे, यहां पीठ
अच्छे के साथ अच्छा, बुरे के साथ बुरा
तभी दुनिया बनेगी तेरी, यहां पर मुरीद
दुनिया मे इतना भी नही हो तू विनीत
लोग कहे तुझे, तू है, एक डरपोक गीत
दुनिया रण को वो ही नर जाता है, जीत
जो कभी नही होता है, खुद से भयभीत
जो व्यक्ति खुद के डर को जाता है, जीत
वो ही इतिहास में सदा बनता है, रणजीत
जो चापलूसी के मधु को समझता, पुनीत
वो दुनिया मे मांगता रह जाता है, भीख
वो विषैले नाग से ज्यादा जहरीले कीट
जो अपना खाकर, शत्रु को देते भेद गीत
ऐसे लोगो को न बना तू दुनिया मे मीत
जो साथ रह तेरे उत्साह को तोड़ते नित
गर तुझे कमल बनना, जग-दरिया बीच
खुद के भीतर के भय को ले, तू जीत
यह भय होता है न, मित्रों बड़ा ही नीच
भय जीतो, फ़लक भी लोगे तुम खरीद।
