ज़िन्दगी खेल नहीं
ज़िन्दगी खेल नहीं
तमाशा बन गयी है
आने दो आने की
ख़ुशी के लिए
ज़्यादा तो नहीं माँगा कभी
पर कुछ वजह तो चाहिए
इस जहां में जीने के लिए।
कैसे कह दूँ
अपना हाले दिल सबके सामने
ये मेरी मोहब्बत की तौहीन होगी
रुसवा जो उसको किया
खलिश उठेगी इस तन में
मन बेचैन बेपर्वाह इश्क की बेड़ियां होंगी।
इल्म उन्हें इस बात पर, कल न था
कि वो ये क्या कर गए
ज़िन्दगी कोई खेल नहीं कि जब चाहा जैसे ज़िया
नशे में न जाने आप क्या-क्या कह दिये
इज्ज़त तो मेरी भी है, समाज में
आज हम मर कर भी ज़िन्दा जाने क्यो रह गए।
ले रही है इम्तेहान
दुखों के ज्वारभाटा से
हम इससे न हारेंगें
कभी तो आयेगा अपना वक़्त भी
संतोष और धैर्य से
हम अपनी प्रेम कथा लिखते जायेंगे।
