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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

बेरोजगार

बेरोजगार

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मैं एक बेरोजगार हूं

मैं दुनिया में लाचार हूं

पढ़ने पर नौकरी न लगा,

मैं पढ़ाई की एक हार हूं

बरसों पढ़ता रहा हूं,

फिर भी मैं बेकार हूं

मैं एक बेरोजगार हूं


लोगो की नज़र में,

मैं एक खराब अनार हूं

कमाता कुछ भी नही,

मित्रों से मांगता उधार हूं

अपनी मजबूरी किसे बताऊं,

मैं उजाले मैं भी दागदार हूँ

मैं एक बेरोजगार हूं


लगता शीशे का तार हूं

सरकार से लाचार हूं

डिग्री रख रखी पास,

फिर भी भूखा संसार हूं

मैं एक बेरोजगार हूं


ख़ास शिक्षा हुनर की हो,

फिर कोई बेरोजगार न हो,

शिक्षा व्यावसायिक बने,

कहूँगा ये बात बार-बार हूं

अब समझा ये बात हूं

रखना खुद को आग में,

फिर बनूँगा सोना मैं,


मैं बना अब समझदार हूं

अब लाखों के बीच में,

ख़ुद को बनाऊंगा तलवार हूं

सफलता मुझे मिलेगी,

मैं बताऊंगा चमत्कार हूं

मैं बेरोजगार नहीं बनूँगा,

मैं मेहनत का पारावार हूं



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