Pooja Agrawal

Abstract Tragedy

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Pooja Agrawal

Abstract Tragedy

मनमानी

मनमानी

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सूनी सी राहों पर ठहरी सी आंखें मेरी

जज़्बातों के शोले टूटती हुई आहें मेरी

जो मुझ में छूट गया वह तेरा है

और तुझ में है निशानी मेरी

कोई पढ़ना चाहे तो कैसे पढ़े

बिखरी हुई सी कहानी मेरी

सोचते हैं जहांँ को छोड़ दें हम

बेवफा मौत भी नहीं आनी मेरी

वक्त चाहता तो कुछ और साथ रहते हम

किस्मत ने भी कहा मानी मेरी

वादा है नहीं बिठाएगें दिल में किसी को

तेरे नाम कर दी जिंदगानी मेरी

फिजा आते ही गुलशन उजड़ गया मेरा

कुछ काम ना आई बागवानी मेरी

शहरयार ने बिछाई ऐसी शतरंज की बिसात

घुटने टेक गई रानी मेरी

उम्रभर इल्तजा की दुश्मनों से दोस्ती की

बड़ी महंगी पड़ी मनमानी मेरी।


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