तुमको क्या नाम दूँ
तुमको क्या नाम दूँ
तुम ही कहो तुम को क्या नाम दें?
जो बादल कहे जो मेरे जहन में आकर टिक जाता है
जो चांद कहें जो रोशनदान से रजनी में मुस्कुराता है
वह तारा कहे कि कभी दिखता है कभी छुपता है
कभी-कभी लगता है यूं ही अटखेली सी करता है
कभी लगता है ठंडी हवा का झोंका हो तुम
जो सुकून से भरा मेरी तरफ आता है
पल में लगता मेरे पास है, पल में उड़ जाता है
निगाह ढूंढती है बावरी सी उसको जब वो
बगीचे के पेड़ की ऊंची डाल पर बैठ जाता है
फिर एक पंछी बन मुझे चिढ़ाने के लिए चहचाहता है
तुम ही बताओ क्या नाम दे तुमको ?
कभी लगता है हारश्रंगार हो तुम, जिसकी खुशबू रूह में उतरती है
कभी लगता है कि नहीं सर्दियों की कुनकुनाती धूप
हो तुम जो मेरे अंदर कहीं खिलने लगी है
कभी बन जाते हो ओस की बूंदे जिसे पत्तों पर देख
यूं ही आनंदित होकर इठलाती जाती हूं
लगता है कि मैं सावन हो तुम जिसमें भीग जाती हूं
कहीं तुम उस पेड़ की छांव तो नहीं??
जिसके नीचे कुछ देर बैठकर
सब कुछ भूल जाती हूं मैं
कभी लहरों की तरह ज्वार भाटा,
भावनाओं का लेकर आते हो तुम
कभी जुगनू की तरह चमक
अंधेरे को रोशन कर जाते हो तुम
फिर लगता है कि तुम कुछ भी सही
मेरे लिए बहुत हो, कुछ से कुछ ज्यादा हो तुम
क्या करना मुझको कि कौन हो तुम
सुनो आए हो थोड़ा ठहर कर जाना
हो सके तो घर ढूंढ लेना नजदीक ,
यहीं कहीं बस जाना
तुम्हें देखकर जीवन जी लूंगी, ऐसा मुझे यकीन है
तुम आज हो मेरे, कल की फिकर क्यों करूं?
बस आज ही तो अपना लगता है!! क्यूँकि उसमें तुम हो..