कुछ पुराने हिसाब लेकर
कुछ पुराने हिसाब लेकर
अर्श से फर्श पर आकर ये समझ आया
जब भोली सूरत के पीछे की
हकीकत को देख पाया
उम्र तमाम की जिनकी खातिर
छुड़ाकर हाथ चल दिए
बचाया था जिन हाथों ने उनको
वो भी उनके साथ चल दिए
दर्दनाक मंजर और यादों के सिवा
पूरे ना हुए उन ख्वाबों के सिवा
कुछ भी नहीं है मेरे गरीब खाने में
किताबों के सिवा
बैठा हूं किताबों के बीच किताब लेकर
जिंदगी तुझसे कभी ना भूलने वाले खिताब लेकर
शौकीन था बहुत मैं भी पढ़ने को तुझे
आज खोलें मैंने पन्ने तेरे कुछ
पुराने हिसाब लेकर।