बड़ा वक्त लगता है
बड़ा वक्त लगता है
दोस्तों आजकल खुलेआम रचनाओं
का बलात्कार किया जाता है
किसी और की रचना को अपना नाम दिया जाता है
चुराकर किसी का टेक्स्ट कॉपी पेस्ट किया जाता है
जब अपने भावों को किसी के द्वारा नोंच नोंच के परोसा जाता है
तो दिल सोच में पड़ जाता है
मेरे भावों को वही समझ सकता है जिस पर बीती हो
जिसने अपने भावों की अभिव्यक्ति करनी सीखी हो
इतना आसान नहीं होता भावों के मनको को,
शब्दों की डोर पर, वाक्य बना पिरोना,
हर अनुभूति को अनुभव करके
कभी खुश होना तो कभी पलकें भिगोना
बड़ा वक्त लगता है
जब क्रोध का दावानल पिघलता है
खुशि
यों की पौ फटती है
दुखों का गुबार निकलता है
प्यार की बारिश होती है ममता का बादल दिखता है
वीरता गरजकर, डर सहम कर
बचपन कभी पैरों से लिपटता है
अपने भीतर ही भीतर जब अनगिनत भावों का द्वंद्व चलता है
ख्वाबों कल्पनाओं के साथ-साथ यथार्थ का ज्वार उमड़ता है
तब जा कागज की धरा पर
कलम की रगों में रेंगती स्याही से,
कवि हृदय की गहराई से निकलती है चंद पंक्तियां
यूं ही नहीं कहते ज्ञानी कि यह काम बड़ा सख्त लगता है
यूं ही उत्पन्न नहीं होती कोई रचना
बड़ा वक्त लगता है।