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Geeta Upadhyay

Abstract Others

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Geeta Upadhyay

Abstract Others

कुछ थोड़े ज्यादा कुछ थोड़े कम

कुछ थोड़े ज्यादा कुछ थोड़े कम

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"कुछ थोड़े ज्यादा कुछ थोड़े कम"

 मोहब्बत और मुकद्दर

 किसे कहते हैं दोस्तों

 जाना नहीं आज तक

 मुकद्दर भी है पास अपने 

मोहब्बत भी है पास 

फिर भी जाने कैसी है ये प्यास

 यह कैसी बेचैनी तड़प

 कभी तो शून्य सी स्थिति

 व्यर्थ मालूम होती है सारी धरा

 छल कपट लोभ लालच पर पंचों में पड़ा

 झूठ की बुनियाद पर हर शख़्स लगता है खड़ा

 क्या यही है जीवन का सार

 शायद सिर्फ -स्वार्थ स्वार्थ स्वार्थ

 पर पहलू होते हैं एक सिक्के के दो 

आंखें बंद करो या चाहे खोलो

 मन ही मन चाहे जितना रो लो

 चाहे जितना खुश हो लो

 सुख में भी स्वार्थ

 दुख में भी स्वार्थ

 प्रभु भजन में भी स्वार्थ

स्वार्थ रूपी नाग फैला के फन 

सबको डसता है दोस्तों 

सब के अंग -अंग में इसका ही 

विष बसता है दोस्तों 

स्वार्थ की ही है सब लीला 

इसी के लिए आदमी सब 

हदें पार करता है दोस्तों

सब स्वार्थी है चाहे आप हो या हम पर 

"कुछ थोड़े ज्यादा कुछ थोड़े कम"

             


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