STORYMIRROR

Geeta Upadhyay

Abstract

4  

Geeta Upadhyay

Abstract

कुछ पता ना चला

कुछ पता ना चला

1 min
466

 बर्दाश्त की सभी सीमाएं तोड़ डाली

 खुद थुंआ होकर कैसे धुरंधर बना

 कुछ पता ना चला

 कतरा कतरा बहके

 कब समुंदर बना 

कुछ पता ना चला


छुपाया था जिसे पलकों में 

वो कब मुकद्दर बना कुछ पता ना चला

अपनी गुजर करना मुश्किल था जिसे

वो सब की बसर बना कुछ पता ना चला 


डरा सहमा झुका सा हर पल 

कैसे सिकंदर बना

 कुछ पता ना चला।


ଏହି ବିଷୟବସ୍ତୁକୁ ମୂଲ୍ୟାଙ୍କନ କରନ୍ତୁ
ଲଗ୍ ଇନ୍

Similar hindi poem from Abstract