कुछ पता ना चला
कुछ पता ना चला
बर्दाश्त की सभी सीमाएं तोड़ डाली
खुद थुंआ होकर कैसे धुरंधर बना
कुछ पता ना चला
कतरा कतरा बहके
कब समुंदर बना
कुछ पता ना चला
छुपाया था जिसे पलकों में
वो कब मुकद्दर बना कुछ पता ना चला
अपनी गुजर करना मुश्किल था जिसे
वो सब की बसर बना कुछ पता ना चला
डरा सहमा झुका सा हर पल
कैसे सिकंदर बना
कुछ पता ना चला।