बुझते हैं चिराग
बुझते हैं चिराग
बुझते हैं चिराग रोशनी थोड़े ही जाती है
क्यों मां तेरी आंखें रह रह के भर आती है
और तू कभी भूले से भी नहीं मुस्कुराती है
बुझते हैं चिराग रोशनी थोड़े ही जाती है
एक अजीब सी घबराहट दिल पर नश्तर चलाती है
कभी तो लगता है कि सांस रुक जाती है
बुझते हैं चिराग रोशनी थोड़े ही जाती है
गमों के भवंर में डूबते हैं जब कभी तो
खुशियां तूफान बन के आती है
बुझते हैं चिराग रोशनी थोड़े ही जाती है
है भरोसा मुझे उस खुदा पर
फिर भी क्यों यह संभावनाओं की दीवार खड़ी हो जाती है
बुझते हैं चिराग रोशनी थोड़े ही जाती है
बात नहीं इतने इसमें कोई बहलाने की
नाकामयाबी की अंतिम सीढ़ी पर ही कामयाबी टकराती है
बुझते हैं चिराग रोशनी थोड़े ही जाती है।