प्राण वायु
प्राण वायु
हम तुमसे क्या माँग रहे थे
बस देते ही रहे I
मिटा के अपना जीवन
तुम्हे संवारते ही रहे I
फल-फूल दिया
थके तो ममता भरी छाँव दी I
घर- आगन को सजाने हेतु
वंदनवार की सौगात दी I
अपने तन का त्याग कर
तुम्हारी क्षुधा अग्नि शांत की I
सांस तुम्हारी चलने हेतु
प्राण वायु भी दान की I
हमसे बस तुम पाते रहे
जीवन पाने की बस आस की I
अपनी आधुनिकता की दौड़ में
थी ध्येय वन - गृह विनाश की I
भविष्य अपना आप तुमने बिगाड़ा
अपने प्रिय वृक्ष मित्र को त्यागाI
यही प्रकृति का तांडव है
कृत्रिम प्राण वायु की खातिर
फिरता तू मारा - मारा I