मिट्टी
मिट्टी
मिट्टी ने पूछा मिट्टी से
काहे का है गर्व तुझे
आज तू मुझे रौन्द रहा
कल रौन्दूँगी मैं तुझे
पाकर मिट्टी की काया
तू तो भ्रम में भरमाया
नश्वर को मान बैठा शाश्वत
ये मिट्टी है इसकी कोई नहीं कीमत
झूठा मान, अभिमान
रह ज़ाना है यहीं ले अब मान
कर्म ही तेरा साथी है
व्यवहार ही तेरा मीत
सच्चे कर्मों से तू अपने
ले इस जग को जीत
मुझमें जब भी तू समायेगा
सच कहती हूँ जग में नाम तेरा रह जायेगा