स्याह सिलेटी
स्याह सिलेटी
काला सफेद के बीच फंस गया रंग बेचारा सिलेटी,
ना ही स्याह ना ही उज्जवल ज्यों राख की हो पेटी,
काला सब अवशोषित करता चाहे अच्छाई हो या बुराई,
उजला उजला रंग शॉंति का दूर करे बुराई की परछाईं,
युद्ध में विजय पाने को मॉं जब आक्रामक हुई,
हा हा कार मचा असुरों में ़स्थिति बड़ी भयावह हुई,
क्रोध के अंगारे दुष्टों को राख करने को लपलपाए,
काली कालिख सा अंधियारा ़छंटने को आतुर हुए,
सुन कर चीख पुकार असुरों की देवी नें अट्टहास किया,
ज्यों बिजली कड़की हो नभ में ऐसा ही आभास किया
थम गई निर्झरा वेग भूल किसने मॉं को है रू़ष्ट किया,
हिलने लगी पर्वत श्रंखला दुस्साहस किस दुष्ट नें किया,
गज सी मादकता है चाल में ऑंधी में उड़ गई बुराई,
सिंह पे होती है सवार ललकार जरा क्या शामत आई,
दसों भुजाओं वाली माता अस्त्र शस्त्र से श्रंगार हुआ,
पवन वेग से चढ़ बैठी छाती पर असुर का मुंह हुआ धुऑं,
स्त्री को कोमल समझा तुझसे यह भारी भूल हुई,
संपूर्ण सृष्टि को रचने वाली क्या तेरे पैरों की धूल हुई,
मैया मेरी जगदम्बे जो मन से कितनी भोली है,
हर लेती है दुख भक्तों का कभी ना नहीं बोली है,
जो मॉं के बच्चों को सताये मॉं कब ऐसा होने देगी,
काट दिया शीश असुर का बच्चों को ना रोने देगी,
तुम ही दुर्गा तुम ही काली तुम ही माता जगत कल्याणी,
शीश झुके तेरे चरणों में विजया हो तुम मात भवानी..!!