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Vandana Srivastava

Children Stories

4  

Vandana Srivastava

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बिल्ली के बच्चे

बिल्ली के बच्चे

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देखा छज्जे पर अटके ,

पांव निकाले थे लटके,

अब गिरे तब गिरे धड़ाम,

काम हुआ अब तो तमाम,

दो बिल्ली के बच्चे..!


सांसे सबकी गई अटक,

बच्चों की जान गई सटक,

पाकर आने की आहट,

वो दोनों थे दुबके,

वो छोटे से बिल्ली के बच्चे...!


कोशिशें सब हो रही नाकाम,

जतन सारे हो रहे तमाम,

डर से चिल्ला चिल्ला ताकते,

जैसे अपनी मां को पुकारते,

वो छोटे से बिल्ली के बच्चे..!


दुविधा बड़ी खड़ी समक्ष,

परिस्थितियां हो रही विपक्ष,

कैसे कोई जाकर बचाये,

जुगत क्या अब कोई लगाये,

डरे सहमें से वो बिल्ली के बच्चे..!


समस्या थी बड़ी विकट,

देख रहे सब एकटक,

कैसे बचायेंगे इनको,

जुगत सोच रहे थे सब जन,

निरीह से वो बिल्ली के बच्चे..!


उनकी मां भी नीचे थी,

वो तीन मंजिल ऊपर थे ,

तभी एक उपाय सूझा,

चारों कोनों से चादर को खींचा,

कूद पड़े जिस पर वो बिल्ली के बच्चे..!


लगी घूमने उठा कर पूंछ,

खुशियों से तन गई थी मूंछ,

मां के पास करते उछल कूद,

मां की ममता का ना दूजा कोई रूप,

अपनी मां से मिल गये थे वो बिल्ली के बच्चे ...!!


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