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Vandana Srivastava

Abstract Inspirational

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Vandana Srivastava

Abstract Inspirational

मॉं..एक निश्छल प्रेम..

मॉं..एक निश्छल प्रेम..

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"जीवन और प्रेम" दोनों की सरल अभिव्यक्ति है मॉं ,

जीवन मॉं के गर्भ से प्रेम का आजीवन सोपान है मॉं,

मैं कभी कभी चकित सोचती हूं ये कैसी दी शक्ति है,

ईश्वर का वरदान है या दिल से की गई निश्छल भक्ति है..!!


समा कर अपने गर्भ में संपूर्ण जीवन एक पालती है ,

ममता का रूप बन प्रेम को परिभाषित कर डालती है,

एक नये जीवन का जन्म उसे ईश्वर समकक्ष करता है,

प्रेम की दरिया का बहता नीर पावन उसको करता है..!!


मॉं तुम ना हो तो कोई जन्म नहीं होगा इस धरा पर,

कोई भी नया जीव कैसे आ पांव धरेगा वसुधा पर,

कहॉं से लाती हो इतनी शक्ति जो चीर दे हृदय पर्वत का,

मुख मोड़ दे कल कल कर बहती हुई निर्भीक निर्झरा का..!!


अपने शिशु को लगा कर हृदय से लड़ जाती हो सबसे,

प्रेम का प्रथम अर्थ है जाना मॉं देखा है तुम्हें मैंनें जबसे 

कैसे और कब शुरू हुआ होगा ये तेरा बहता निश्छल प्रेम ,

क्या गर्भ में आते ही स्पंदित होता है रोम रोम हो बेचैन..!!


 "जीवन और प्रेम"की तुमसे बेहतर मैं क्या दूं मिसाल,

शब्द विहीन हो जाती हूं आ जाता है वर्ण अन्तराल,

तुमसे ही शुरू तुम पर ही खत्म मेरी सारी उपमायें हुईं,

भूल गई मैं क्रिया ब्याकरण मूक बधिर सारी सीमायें हुईं..!!


अनंत अगाध प्रेम संजीवनी जो मृत्यु से भी नहीं डरती है,

लेकर सारी बलायें शिशु जीवन की सारे दुख को हरती है,

क्यों ना हो सारा प्रेम न्यौछावर भर भर कोर मैं तुम्हें ताकूं,

अंक में मुझको समाहित कर लो ये दुनिया मैं क्या जानूं..!!


प्रेम सर्मपण, प्रेम ही पूजा, प्रेम आत्मा, प्रेम है अशरीरी,

जिस जीवन को जन्म दिया उस जीवन से प्रेम है जरूरी,

संपूर्ण जीवन कर समर्पित क्या असीम सुख तुम पाती हो 

मॉं तुम केवल मॉं हो "जीवन और प्रेम" रूप कहलाती हो..!!


लिखने बैठूंगी तो लेखनी को ना क़भी विश्राम मिलेगा,

मॉं तुम्हारा गुणगान इन चंद पंक्तियों में कैसे सिमटेगा,

भाव की बात है भाव मेरा तुम नयन पढ़ समझ लेती हो,

मॉ तुम मेरी जीवन दायिनी विह्वल प्रेम में जकड़ लेती हो..!!


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