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Rajendra Singh

Abstract

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Rajendra Singh

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मुफ्लिसी

मुफ्लिसी

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मुफ्लिसी तेरा नाम कुछ और है। 

और तुम्हे कहते कुछ और हैं।। 

आज तक आपका पता ही नहीं चला, 

कि आपका कितना, कहाँ कितना छौर है।। 

मुफ्लिसी में डूब गया तार। 


मगर घट में है उजियारा ।। 

मगर पता ही नहीं चला कब हुई शाम 

तो कब हुई भौर है।। 

राजेंद्र यह मतलबियों का दौर है।। 



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