अजीब है जमाने
अजीब है जमाने
अजीब है जमाने का चलन,
अपने ही अपनों पर ढाते सितम,
ना दिल में मुरव्वत रही, ना आंखों में पानी
यहां रिश्ते नाते सब हो गए बेमानी।
अपने ही खून दे रहे हैं दगा,
दूसरों को कैसे हम कहें सगा,
पहले चलती थी गांवों में,
प्यार की पुरवइया,
अब तो मतलब की चलती हवा ।
खत्म हुए सब बाग और बगिया,
मुस्कुराती फूलों की थी फुलवारियां ,
अब वहां हैं कांटों की बगिया।
