संतोष
संतोष
संतोष ना हो जीवन में ,
वह जीवन व्यर्थ हो जाता है,
असंतोष को मन में धर कर ,
कोई कुछ नहीं कर पाता है ,।
संतोषम परम सुखम को मानो,
जीवन का उद्धार करो ,
सारे दुख दूर हो जायेंगे ,
अडिग रहो तुम बन संतोषी,।
असंतोष जन्म देता है हरदम,
नए नए अभाव और तृष्णा को ,
उसके चक्र में फंस कर करते ,
हम अपने खुशियों का नाश।
जो सह जाता विपरीत वेग,
संतोष पर अटल रह कर,
संवर जाती है उसकी दुनिया,
हो जाता उसका बेड़ा पार,।