संगत
संगत
कुसंगत में रहने वाले,
कभी नहीं पनप पाते,
सुसंगत में रहने वाले,
हरदम सम्मान है पाते।
सच्ची बाते कड़वे बोल,
सुसंगत की बाते अनमोल,
मीठी छुरी और मीठे बोल,
कुसंगत के है ये प्यारे मोल।
कुसंगत नैतिक पतन है करता,
वातावरण को दूषित करता ,
करता है सम्मान का विघटन,
जैसे शरीर से लिपटे अपटन।
सुसंगत अनुशासन रखता,
कभी भटकने नही है देता,
संस्कार को रहता है समेटे,
बनने ना देता किसी को खोटे।