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Awantika Bhatt

Abstract

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Awantika Bhatt

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यादें...

यादें...

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साल के उस समय की फिर से लालसा, 

कागजों के ढेर के नीचे, 

आधी-अधूरी गंदी मेजों के पीछे, 

बारिश की महक के साथ बह रही ठंडी हवा, 


पिघले हुए सोने की तरह छनती हुई धूप की अकसवा, 

सिंफनी का आर्केस्ट्रा बनाने वाले कीड़ों की भिनभिनाहट,

 बच्चों के हंसने और खेलने की कनकनाहट, 

नारंगी पेय और चिपचिपी उंगलियां,


तितली की दृष्टि, घुटने का खुरचना,

दादी मां की कहानियां, 

उफ्फ्फ... उम्र अब नहीं काफी, 

बस यही यादें हैं बाकी ! 


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