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Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract

4.7  

Ratna Kaul Bhardwaj

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अंतिम इच्छा, अंतिम पल

अंतिम इच्छा, अंतिम पल

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अदृष्य रूप से प्रकाशमान रथ

उसके द्वार पर जब रुक गया

आँखें प्रसन्न थी, मन दुविधा में

शीश यम चरणों में झुक गया


आदर से यम ने पूछ लिया जब

दुविधा में देखा अर्ध मृत शय्या को

"क्या हुआ ए मानव, समय है आया

चलो संग, छोड़ मिट्टी की काया को


वे बोलीं

अंतिम बार बंधनों को पुख्ता कर दूँ

फिर चल पड़ों मैं अपने रास्ते

माया जाल इस जन्म में जो बिछाया है

समझा दूँ उन्हें कैसे निभाये रिश्ते


दृढता भर दूँ उन सबके मन में

ये धरती पर जो ज़िंदा मेरे अंश हैं

आशीष इन्हें सत्य व निडरता का दूं

आखिरी कर्तव्य निभाऊं ,यह मेरा वंश है


कह दूँ उन्हें न कोई विलाप करें

अनन्त सफर शरू मेरा होना है

वापिस आऊँगी किसी नए रूप में

आत्माओं का संबंध निभाना है


ज़िन्दगी की दौड़ में मैं हारी नही कभी

यह जज़्बात इस दर पर चिन्ह कर दूं

धरोहर इस घर की यही बनी रहे

ऐसे मूल्यों से सब के मन भर दूं


काया त्यागने का प्रभु अफसोस नही

जानती हूँ जीवन-मरण की लीला को

पर वादा करो अंतिम इच्छा पूरी करोगे

अगले जन्म भी यही मेरा कबीला हो.......


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