परिवर्तन
परिवर्तन
आसमां से धुएँ का धुंध हट गया
हीर को चाँद में रांझा दिख गया
चिड़ियाँ चहचहाने लगी है
गंगा खुश है कि बहन यमुना
विमल हो मुस्कुराने लगी है
छतों से पहाड़ दिख रहे हैं
उल्लू, नीलगाय, मोर, हिरन
स्वच्छंद हो विचरण कर रहे हैं
पतझड़ में भी बसंत है
जीव-जंतु अब अरिहंत है
प्रकृति ने सूखे पत्तों से श्रृंगार कर लिया
मानव ने पिंजरे के पक्षी का दर्द समझ लिया
यह कैसा परिवर्तन है
यही समझा रही है
हमने जो इस सृष्टि को दिया है
कुदरत वहीं लौटा रही है।।।।