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Swati Grover

Drama Tragedy Classics

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Swati Grover

Drama Tragedy Classics

एक साधारण मानव

एक साधारण मानव

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क्या ! मेरी कमिया निकालते-निकालते थक गए हो ?

अनायास ही फब्तियां कसते-कसते रुक गये हों

तुम तो सम्पूर्ण हो, परिपूर्ण हो

अपूर्णता तुम्हे छू नहीं पाई

चाहे ढाई कदम या फिर सीधी चाल

कोई शह तुम्हे मात नहीं दे पाई


याद हैं तुम्हारे शब्द -भेदी बाण

कैसे मेरे हृदय को बेध डालते थे

तुम वीर हो अर्जुन की तरह

मगर आज वो बहेलिया ज्यादा बहादुर लगता हैं

जिसने श्री कृष्ण को मारा था


तुम्हारी ख़ामोशी देखकर बस इतना समझ आया हैं

वक़्त ने तुम्हे भी कोई नया पाठ पढ़ाया हैं

मैं तभी मौन थी जब तुम वाचाल थे

मैं आज भी मौन हो

जब तुम मूक हो

मैं तुम्हारी तरह नहीं बन सकती


मुझे वो संघर्ष समझ में आता हैं

जो चरम पर पहुँचते हुए

नियति के हाथो से चोट खा पाँव में छाले दे जाता हैं

हां मैं तुम्हारी तरह नहीं हो सकती

कोई देवता नहीं एक साधारण मानव

केवल एक साधारण मानव.....................


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