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Vijay Kumar parashar "साखी"

Drama Others

4.5  

Vijay Kumar parashar "साखी"

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"सुबह की धूप"

"सुबह की धूप"

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सुबह की खिली हुई धूप का करो,स्वागत

इस धूप में मिली हुई है,खुदा की मोहब्बत

सुबह-सुबह बरसता है,बहुत ज्यादा अमृत

इस वक्त कुछ ज्यादा होती,रब की रहमत


सुबह का वक्त,ऐसा लगता जैसे हो जन्नत

सुबह का वातावरण,कर्म की देता,इजाजत

पढ़ा,लिखा,हर किया गया कार्य होता उन्नत

सुबह-ताजा ऊर्जा,की सबको होती जरूरत


सुबह का वक्त जिसका अच्छा निकलता है

उसका पूरा दिन निकलता है,बहुत खूबसूरत

दिल को देती सुकूँ,भोर निकली पहली किरण

जो जल्दी उठते है,उन्हें मिलती अच्छी रिजक


कहता,साखी,सूर्योदय पूर्व उठने डालो आदत

जो उठे,जल्दी,उसकी अच्छी रहती,तबियत

वो पाते अपने कर्मों की एकदम सही,कीमत

जो भी जल्दी उठकर करते है,कठोर मेहनत


वो जल्द ही पाते कामयाबी सीढ़ियों का रथ

जो ख़ुद की आत्मसंतुष्टि से होते है,सहमत

>वो एकदिन अवश्य ही बनते है,रोशन दीपक

जो कर्म को ही मानते है,खुदा की इबादत


उन्हें भोर धूप देती है,कर्म करने की हिम्मत

उन्हें मिलती है,दुनिया मे धन-दौलत,शोहरत

जो सुबह की धूप का करते है,नित स्वागत

जायदाद नही,अच्छे कर्म है,साखी वसीयत


जो मरने के बाद भी,दिलों में रहेगी,सलामत

अपने कर्मो से इतनी कर,तू साखी मोहब्बत

खुदा के ह्रदय में भी बढ़ जाये,तेरी इज्जत

जो रखते,अपने कर्मो में साफ,अच्छी नियत


सुबह धूप करती नही,उनके साथ बगावत

सुबह धूप,आलसियों को ही करती,आहत

कर्मवीरों को सुबह की धूप देती है,ताकत

जो अपने लक्ष्य के लिये है,नित प्रयासरत


जो मंजिल पाने वास्ते बढ़ा रहे,नित कदम

सुबह धूप,उनके लिये है,खजाना ए जन्नत

सुबह धूप,समझ साखी अनमोल अमानत

इसकी ऊर्जा सहज,पायेगा फ़लक फ़क़त

 


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