गांव शहर
गांव शहर
गांव हमारा खुशियों की खान
हरियाली जिसकी रहती पहचान
मिलते जिसमें हँसते लोग
किसी को हो कैसे रोग
शुद्ध हवा हर दम मिलता
नदी देख मन जो खिलता
किसी घर में खुशी सुन
पूरा गांव जश्न मनाने आता
कोई विपदा कहीं आए
सारा गांव मिल दूर भगाता
ऊँची अट्टालिकाओं की पहचान यह शहर
लाखों लोगों से भरा अकेले रोता यह शहर
मशीनों से चलता मशीन इंसान का यह शहर
कहीं धुंआ कहीं तेज आवाज कहीं गंदगी यह शहर
हर कौने में लड़ते रोग, सुबकती आत्मा यह शहर
छोटे घर के पीछे लड़े भाई साज़िश भरा यह शहर
चोरी हत्या और नारी से अभद्र व्यवहार यह शहर
यहां कोई गम नहीं बाँटता अपने मे रोता यह शहर
पानी बोतलों में है आता नदियों में कचरा यह शहर
यह कैसा विकास है आया
समाज अब व्यक्ति मे समाया
दिखे हज़ारों लोग सदा
पर कोई किसी को ना भाया।